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मध्यान्ह भोजन योजना एक अत्यन्त जनोपयोगी योजना है जो भारत सरकार तथा राज्य सरकार के समवेत प्रयासो से संचालित है। भारत सरकार द्वारा यह योजना 15 अगस्त, 1955 को लागू की गयी थी, जिसके अन्तर्गत कक्षा 1 से 5 तक प्रदेश के सरकारी/परिषदीय/राज्य सरकार द्वारा सहायता प्राप्त प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ने वाले सभी बच्चों को 80 प्रतिशत उपस्थिति पर प्रतिमाह 03 किग्रा० गेहूँ अथवा चावल दिये जाने की व्यवस्था की गयी थी। किन्तु योजना के अन्तर्गत छात्रों को दिये जाने वाले खाद्यान्न का पूर्ण लाभ छात्र को न प्राप्त होकर उसके परिवार के मध्य बँट जाता था, क्योंकि पूर्व में पके-पकाये भोजन की व्यवस्था नही थी। इससे छात्र को वांछित पौष्टिक तत्व कम मात्रा में प्राप्त होते थे। मा० सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिनांक 28 नवम्बर, 2001 को दिये गये निर्देश के क्रम में प्रदेश में दिनांक 01 सितम्बर, 2004 से पका-पकाया भोजन प्राथमिक विद्यालयों में उपलब्ध कराने की योजना आरम्भ कर दी गयी है। इस योजना के माध्यम से वित्तीय वर्ष 2007-08 में प्रदेश के प्राथमिक विद्यालयों में अध्ययनरत लगभग 1.94 करोड़ बच्चों को प्रतिदिन पका-पकाया भोजन विद्यालय में दिया जाना प्रस्तावित है। योजना के क्रियान्वयन हेतु मध्यान्ह भोजन प्राधिकरण का गठन निम्न उद्देश्य को ध्यान रखकर किया गया है:-
योजनान्तर्गत पके-पकाये भोजन की व्यवस्था इस योजनान्तर्गत विद्यालयों में मध्यावकाश में छात्र-छात्राओं को स्वादिष्ट एवं रूचिकर भोजन प्रदान किया जाता है। योजनान्तर्गत प्रत्येक छात्र को सप्ताह में 4 दिन चावल के बने भोज्य पदार्थ तथा 2 दिन गेहूं से बने भोज्य पदार्थ दिये जाने की व्यवस्था की गयी है। प्रत्येक छात्र/छात्रा को प्रतिदिन 100 ग्राम खाद्यान्न से निर्मित सामाग्री दी जाती है। खाद्यान्न से भोजन पकाने के लिए परिवर्तन लागत की व्यवस्था की गयी है। परिवर्तन लागत से सब्जी, तेल, मसाले एवं अन्य सामग्रियों की व्यवस्था की जाती है। उपलब्ध कराये जा रहे भोजन में कम से कम 450 कैलोरी ऊर्जा व 12 ग्राम प्रोटीन उपलब्ध होना चाहिए। परिवर्धित पोषण मानक के अनुसार मीनू में व्यापक परिवर्तन किया गया है, तथा इसका व्यापक प्रसार-प्रचार किया गया है। खाद्यान्न की व्यवस्था मध्यान्ह भोजन के क्रियान्वयन अर्थात् भोजन पकाने का कार्य ग्राम पंचायतों की देख-रेख में किया जा रहा है। भोजन बनाने हेतु आवश्यक खाद्यान्न (गेहूं एवं चावल) जो फूड कारपोरेशन आँफ इण्डिया से नि:शुल्क प्रदान किया जाता है, उसे सरकारी सस्ते-गल्ले की दुकान से प्राप्त कर ग्राम प्रधान द्वारा अपनी देख-रेख में विद्यालय परिसर में बने किचेनशेड में भोजन तैयार कराया जाता है भोजन बनाने हेतु लगने वाली अन्य आवश्यक सामग्री की व्यवस्था करने का दायित्व भी ग्राम प्रधान का ही है। इस हेतु उसे परिवर्तन लागत भी उपलब्ध का कार्य स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा किया जा रहा है। भोजन बनाने हेतु वित्तीय व्यवस्था योजना के प्रारम्भ से 14 अगस्त, 2006 तक खाद्यान्न से भोजन बनाने हेतु 1 रूपया/प्रति बच्चा प्रति दिन की दर से परिवर्तन लागत भारत सरकार द्वारा दी जा रही थी। 15 अगस्त, 2006 से रूपये 2/- प्रति छात्र प्रति दिन की दर से दिया गया है। इस राशि का 25 प्रतिशत उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा वहन किया जा रहा है। वित्तीय वर्ष 2006-07 में योजनान्तर्गत कुल रू० 62648.98 लाख की वित्तीय स्वीकृति जारी हुई थी। भोजन हेतु मीनू की व्यवस्था मध्यान्ह भोजन की विविधता हेतु सप्ताह के प्रत्येक कार्यदिवस हेतु भिन्न-2 प्रकार का भोजन (मीनू) दिये जाने की व्यवस्था की गई है, जिससे भोजन के सभी पोषक तत्व उपलब्ध हो तथा वह बच्चों की अभिरूचि के अनुसर भी हो। मीनू निर्धारित होने से पारदर्शिता आई है तथा जन-समुदाय मीनू के अनुपालन की स्थिति को ज्ञात करने में सक्षम हो सका है। अनुश्रवण एवं पर्यवेक्षक की व्यवस्था विद्यालयों में पके-पकाये भोजन की उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु नगर क्षेत्र स्तर पर वार्ड समिति एवं ग्राम पंचायत स्तर पर ग्राम पंचायत समिति का गठन किया गया है। मण्डल स्तर पर योजना के अनुश्रवण और पर्यवेक्षण हेतु मण्डलीय सहायक निदेशक (बेसिक शिक्षा) को दायित्व सौंपा गया है। जनपद स्तर पर योजना के अनुश्रवण एवं पर्यवेक्षण हेतु जिलाधिकारी को नोडल अधिकारी का दायित्व सौंपा गया है। विकास ख्ण्ड स्तर पर उप जिलाधिकारी की अध्यक्षता में टास्क फोर्स गठित की गयी है, जिसमें सहायक बेसिक शिक्षा अधिकारी/प्रति उप विद्यालय निरीक्षक को सदस्य सचिव के रूप में नियुक्त किया गया है। |
Saturday, June 14, 2008
Pledge to make India 100% educated country.
all the content taken from up government website. these are the rules made for the mid day meal project. all the details above is also working but it have also some faults. children come to school to take meal only and most of time of teacher which is precious for the students is wasted to manage the mid day meal.
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